कलाकार
दूर है मंज़िल कठिन डगर है
थक कर रुक मत जाना राही
चलते रहना अविरल गति से
जीवन पथ पर, ऐ हमराही
तन की पीड़ा मन की उलझन
होंगी कईं मुश्किलें सफर में
तुम विचलित न होना साथी
कट जाएंगी वे भी पल भर में
यह दुनिया एक रंगमंच है
सब हैं नाटककार यहाँ पर
दिल में लाखों ग़म हैं फिर भी
बाँट रहे हैं प्यार यहाँ पर
सुख दुःख दो पहलू जीवन के
कहीं धुप तो कहीं छाँव रही है
बाँट ले ग़म हम एक दूजे के
मानवता की चाह यही है
माना अब यह जीवन संध्या है
कल क्या होगा अंदाज़ नहीं है
चलते चलते कुछ तो कर जाएँ
अंतर्मन की आवाज़ यही है
सुशीला घाटे ‘जैन’ – Mumbai
Comment (1)
बहुत ही आसान शब्दों में आपने जीवन सफ़रनामें से परिचय करवाया , अति सुंदर रचना