Kalakaar

कलाकार

दूर है मंज़िल कठिन डगर है
थक कर रुक मत जाना राही
चलते रहना अविरल गति से
जीवन पथ पर, ऐ हमराही

तन की पीड़ा मन की उलझन
होंगी कईं मुश्किलें सफर में
तुम विचलित न होना साथी
कट जाएंगी वे भी पल भर में

यह दुनिया एक रंगमंच है
सब हैं नाटककार यहाँ पर
दिल में लाखों ग़म हैं फिर भी
बाँट रहे हैं प्यार यहाँ पर

सुख दुःख दो पहलू जीवन के
कहीं धुप तो कहीं छाँव रही है
बाँट ले ग़म हम एक दूजे के
मानवता की चाह यही है

माना अब यह जीवन संध्या है
कल क्या होगा अंदाज़ नहीं है
चलते चलते कुछ तो कर जाएँ
अंतर्मन की आवाज़ यही है

सुशीला घाटे ‘जैन’ – Mumbai

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Comment (1)

  • पंकज जैन , भोपाल Reply

    बहुत ही आसान शब्दों में आपने जीवन सफ़रनामें से परिचय करवाया , अति सुंदर रचना

    19 April 2021 at 4:06 pm

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