गीत की लय ही उसे चिरायु करती है – पद्मविभूषण गोपालदास ‘नीरज’
- Dr. Kirti Kale | kirti_kale@yahoo.com
कवि सम्मेलन का अध्यक्ष किसी सूची संपन्न प्रतिष्ठित व्यक्ति को बनाना चाहिए। उसे साहित्यिक ज्ञान भी होना चाहिए। पहले अध्यक्ष का मनोनयन सभा द्वारा होना चाहिए फिर कार्यक्रम के प्रारंभ में अध्यक्षीय उद्बोधन होना चाहिए, जिसमें श्रोताओं को बताना चाहिए कि जीवन में कविता का क्या महत्त्व है और कवि सम्मेलन की क्या सार्थकता है। अध्यक्ष का दायित्व है कि वो संपूर्ण कवि सम्मेलन को गरिमापूर्ण ढंग से संपन्न कराए। – कवि ‘नीरज’ से डॉक्टर कीर्ति काले का विशेष साक्षात्कार (विशेष आभार – बातों बातों में)
कविता लिखना कब और कैसे प्रारंभ किया?
सन् 1941 से लिखना प्रारंभ किया। सन 1942 में एटा में पहली बार कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया। सन् 1947 में पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। मुझे निराला जी, पंत जी, बच्चन जी, नेपाली जी, रंग जी और दिनकर जी जैसे बड़े-बड़े कवियों के साथ बहुत प्रारंभ से ही काव्य पाठ करने का सुअवसर प्राप्त हो गया। मैं अपने आप को बड़ा सौभाग्यशाली मानता हूँ जो इतने प्रतिष्ठित साहित्यकारों का सानिध्य और आशीर्वाद मुझे मिला।
क्या आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्य रही है?
नहीं, मेरे परिवार में कोई भी कवि नहीं था। ईश्वर ने यह वरदान मेरी ही झोली में डाला। मैं इसे पिछले जन्मों का पुण्य प्रताप मानता हूँ जिसके कारण मैं कवि हुआ। मेरा एक दोहा है: “आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य”।
गीत का कौन सा तत्व उसे चिरजीवी और लोकप्रिय बनाता है?
गीत में सबसे प्रमुख तत्व है लय। गीत की लय ही इसे चिरायु करती है क्योंकि ब्रह्मांड में जो कुछ हो रहा है लय में घटित हो रहा है। पृथ्वी एक लय में सूर्य की परिक्रमा कर रही है। नक्षत्र एक लय में घूम रहे हैं। हवा, पानी सब एक लय में बहते हैं। यहाँ तक कि हमारी शिराओं में जो रक्त है वह भी एक लय में प्रवाहित होता है। हम साँस एक लय से लेते हैं। सभी कुछ लयबद्ध है। जिस गीत की लय सृष्टि की लय के समरूप हो जाती है वो गीत चिरजीवी हो जाता है
आप सन 1942 से कवि सम्मेलनों में हैं। कवि सम्मेलनों के लगभग सात दशकों के इतिहास के आप इकलौते साक्षी हैं। तब होने वाले कवि सममेलनों और अब होने वाले कवि सम्मेलनों में आपको क्या अन्तर दिखाई देता है?
उस समय की बात ही और थी। तब कवि सम्मेलन में कविता होती थी। निराला जी, बच्चन जी, दिनकर जी, पंत जी आते थे। महादेवी जी अध्यक्षता करने आती थीं। कवि सम्मेलन में कविता सुनाना और कविता सुनना दोनों प्रतिष्ठा का काम था। कवियों का बहुत सम्मान था। श्रोताओं में बड़े-बड़े साहित्यकार-समीक्षक बैठते थे। कवियों में अच्छी से अच्छी कविता सुनाने की होड़ रहती थी। आज तो सब कुछ चौपट हो गया।
अब कविता सुनने श्रोता नहीं आते, भीड़ आती है, और भीड़ के पास बुद्धि नहीं होती। कविता सुनने, समझने और सराहने के लिए संस्कारित बुद्धि का होना आवश्यक है। अब भीड़ को कोई क्या कविता सुनाएगा? लेकिन यह समय का चक्र है| आज कविता का उद्देश्य मनोरंजन हो गया है। पहले कविता आत्मा के आनंद के लिए होती थी। आज के व्यस्त समय में लोग मनोरंजन तक ही पहुँच पाते हैं, आनंद तक नहीं पहुँच पाते। कभी भी चुटकुलेबाजी करके, टिप्पणियां बोलकर तालियां पिटवा लेते हैं।
कवि सम्मेलन अब उद्योग बन गया है। जैसे कि कला, राजनीति, धर्म उद्योग बन गए हैं। हर शहर के ठेकेदार हैं। दिल्ली का ठेकेदार, बम्बई का ठेकेदार, ठेकेदार कवियों को बुलाते हैं। आयोजक का मोटा पैसा अपनी जेब में डालते हैं। बचा हुआ कवियों में बाँटते हैं। चार से पाँच घंटे का मनोरंजन कर देते हैं, बस। लेकिन यह समय भी बदलेगा।
पहले काव्य मंचों पर गीत का साम्राज्य था। धीरे धीरे गीत हाशिए पर आ गया। आप इस परिवर्तन के सहभागी और साक्षी रहे हैं। काव्य मंचों का राजा गीत अंतिम पंक्ति का दरबारी क्यों बन गया?
समय के साथ सब बदलता है। समाज में विद्रूपता आती गई, तनाव बढ़ता गया, अर्थ की प्रधानता होती गई। ऐसे में लोग व्यंग सुनना पसंद करने लगे, हास्य सुनना पसंद करने लगे। गीत शांति से लिखा जाता है और शांति से सुना जाता है। आजकल वातावरण में बहुत शोर है, हवाई जहाज का शोर, मोटर का शोर, स्कूटर का शोर, मशीनों का शोर। शोर में मेलोडी गायब हो जाती है। आजकल फिल्मी गीतों में से भी मैलोडी गायब हो गई है। यह एक चक्र है, इसमें किसी का दोष नहीं है। कुछ समय बाद फिर मैलोडी लौटेगी, अब इसके संकेत मिलने लगे हैं।
आपने फ़िल्मों में भी गीत लिखे हैं और सभी सुपरहिट हुए हैं। फ़िल्मी गीत लेखन और स्वच्छंद गीत लेखन की प्रक्रिया में क्या अंतर है?
फ़िल्मी गीत, सिचुएशन पर लिखे जाते हैं। फ़िल्म की कहानी के अनुसार, चरित्रों के अनुसार, फ़िल्म की पृष्ठभूमि के अनुसार गीत की भाषा और उसके भाव रखने पड़ते हैं। संगीतकार धुन देते हैं, उस धुन में शब्द इस कुशलता से फिट करने होते हैं कि वो सहज और अर्थवान हों। फिर उसमें कविता भी कहीं-कहीं हो जाए तो कवि का कौशल है। स्वच्छंद गीत लिखने में गीतकार अपने मन का मालिक होता है। जो भाव उसके मन में आते हैं। उन्हें वो किसी भी रूप में, किसी भी छंद में व्यक्त कर सकता है।
आजकल 20 से 35 वर्ष के श्रोता कवि सम्मेलनों में दिखाई नहीं देते इसका क्या कारण है?
नए श्रोता कवि सम्मेलन में क्यों आएँगे? कवि सम्मेलन में अब कविता तो होती नहीं, चुटकुले होते हैं! मिमिक्री होती है! कोई लालू यादव की नकल कर रहा है, कोई अटल जी की मिमिक्री कर रहा है! सभी कवि वे ही पुरानी कविताएं सुनाते हैं। नौजवानों के लिए उनके पास कईं काम है। उन्हें अपना करियर बनाना है। ये फूहड़ बाजी वो क्यों सुनेंगे? इसलिए वो नहीं आते।
युवा श्रोताओं को कवि सम्मेलन की ओर आकर्षित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
कॉलेजों में कवि सम्मेलन हो। कवि कम मानदेय पर कॉलेज के कवि सम्मेलनों में जाएं। युवाओं में कविता के प्रति रुचि जागृत करें। कवि सम्मेलनों में रसपूर्ण, लयात्मक और सार्थक कविताएं सुनाएं तो हो सकता है कि कवि सम्मेलन में युवा श्रोताओं की भागीदारी बढ़े।
नए गीतकारों को गीत लेखन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अपने क्या किया?
मैं क्या कर सकता हूँ? मेरा इतनी सामर्थ्य नहीं है। फिर भी जहाँ मुझे कोई अच्छा गीतकार या कवयित्री दिखाई देती है, उसे मैं रिकमेंड करता हूँ।
हास्य रस के बड़े एवं लोकप्रिय कवियों ने अपने बाद के हास्य कवियों के लिए पुरस्कार शुरू किए हैं जैसे काका हाथरसी पुरस्कार, ओम प्रकाश आदित्य पुरस्कार, आदि। आप गीत के वरिष्ठ हस्ताक्षर हैं, आपने परिवर्ती गीतकारों के लिए क्या कोई पुरस्कार शुरू किया है?
जी, पिछले वर्ष से नीरज फाउंडेशन की ओर से 21,000 का पुरस्कार किसी कवि या शायर को देना शुरू किया है। पहला पुरस्कार डॉक्टर बशीर बद्र को दिया था। अब बड़े-बड़े पुरस्कार तो मैं नहीं दे सकता 5000 का पुरस्कार किसी ज्योतिषी को और 5000 का पुरस्कार किसी पत्रकार को दिया है।
पिछले 22 वर्षों से मैं कवि सम्मेलन में हूँ। मैंने यह महसूस किया है कि आप वही गिने चुने पाँच सात गीत और मुक्तकों का ही हमेशा पाठ करते हैं। जबकि आपने हज़ारों गीत लिखे हैं। उन्हीं पाँच-सात चुनिंदा गीतों का हमेशा पाठ करने की कोई ख़ास वजह है?
अरे मैं तो बहुत कुछ सुनाना चाहता हूँ, लेकिन लोग उन्हीं पुराने गीतों की फरमाइश कर देते हैं। जहाँ जाता हूँ वहाँ बस ‘कारवां गुज़र गया’ की फरमाइश हो जाती है। फिर मैं क्या करूँ, लोग जो सुनना चाहेंगे वो तो सुनाना ही पड़ेगा, नहीं तो नाराज़ हो जाएंगे। कवि सम्मेलन में बुलाना बंद कर देंगे। लोग नहीं समझते कि मैं ‘कारवां गुज़र गया’ वाली मानसिकता से बहुत आगे निकल गया हूँ।
आप वरिष्ठ होने के नाते कवि सम्मेलन की अनेक बार अध्यक्षता करते हैं। कवि सम्मेलन का अध्यक्ष किसे बनाया जाना चाहिए और अध्यक्ष के दायित्व क्या हैं?
कवि सम्मेलन का अध्यक्ष किसी सूची संपन्न प्रतिष्ठित व्यक्ति को बनाना चाहिए। उसे साहित्यिक ज्ञान भी होना चाहिए। पहले अध्यक्ष का मनोनयन सभा द्वारा होना चाहिए। फिर कार्यक्रम के प्रारंभ में अध्यक्षीय उद्बोधन होना चाहिए, जिसमें श्रोताओं को बताना चाहिए कि जीवन में कविता का क्या महत्त्व है और कवि सम्मेलन की क्या सार्थकता है।
अध्यक्ष का दायित्व है कि वो संपूर्ण कवि सम्मेलन को गरिमापूर्ण ढंग से संपन्न कराए। यदि कोई अशोभनीय बात हो तो उसे रोके। लेकिन आज कल कवि सम्मेलन में अध्यक्ष ही नहीं बनाते। संचालक ही सब काम करता है। पूरे कार्यक्रम में वही बोलता रहता है। कवियों के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं होती। कवियों के साहित्यिक योगदान को वो नहीं जानता। चुटकुले सुनाकर कवि को प्रस्तुत कर देता है, या लंबी-लंबी अनर्गल भूमिकाएं बांधता है, और वो स्वयं को जमाता है, कवि सम्मेलन को नहीं जमाता। वरीष्ठ कवियों का भी लिहाज नहीं करता। यदि अध्यक्ष उसे टोकता है तो लोग अध्यक्ष को ही अपमानित कर देते हैं।
एक बार लाल किले के कवि सम्मेलन में मेरे कहने पर इंदौर के शायर महबूब को बुला लिया। उन्होंने तुतलाकर पढ़ना शुरू किया तो लोगों ने तालियाँ बजाईं। बच्चन जी ने उन्हें टोका तो श्रोताओं ने बच्चनजी को हूट कर दिया। तब से बच्चन जी ने कवि सम्मेलनों में जाना बंद कर दिया। दिनकर जी को भी इसी तरह किसी को टोकने पर मानित होना पड़ा। इसलिए जनता के सामने किसी की नहीं चलती और अध्यक्ष चुप्पी साध लेते हैं।
क्या कवि सम्मेलन में चुटकुले होने चाहियें ? आज-कल तो गीतकार भी चुटकुले सुनाने लगे हैं?
कवि सम्मेलन अब मनोरंजन का साधन हो गए हैं। मनोरंजन का शॉर्टकट चुटकुले हैं, इसलिए कवि चुटकुले सुनाते हैं। लेकिन मेरे मत से कवि सम्मेलन में कविता के अलावा और कुछ नहीं होना चाहिए आज-कल गीतकार गलेबाजी करके, वीर रस के कवि पटेल, सुभाष और पाकिस्तान के नाम पर तालियाँ बजवाकर हास्य कवि चुटकुले सुनाकर काम निकालते हैं। बार-बार तालियों की भीख मांगते हैं। अरे, कविता सुनी जाती है समझी जाती है तब सराही जाती है। कविता में तालियों का क्या काम?
‘कवि सम्मेलन समाचार‘ पत्रिका आपको कैसी लगती है?
अपने ढंग की अनूठी पत्रिका है। कवि सम्मेलन की अकेली पत्रिका है, इसका विस्तार होना चाहिए।
(पिछले 20 वर्षों से डॉक्टर कीर्ति काले के गीतों का जादू श्रोताओं के लिए सिर चढ़कर बोल रहा है। वे कवि सम्मेलनों की सर्वाधिक लोकप्रिय कवयित्री हैं। उन्होंने देश-विदेश में आयोजित हज़ारों कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ कर दुनिया भर में हिंदी गीतों का परचम फहराया है। हिंदी कवि सम्मेलनों की पहली अकेली और संपूर्ण पत्रिका ‘कवि सम्मेलन समाचार’ की वे उप-संपादक हैं। मंच पर उनकी उपस्थिति से कवि सम्मेलन की गरिमा बढ़ती है।)
Comments (3)
अद्भुत! एक संपूर्ण साक्षात्कार जिसे सालों तक संजोया जाना चाहिए।
Amazing information , Swaraalap is always a “Pioneer” in sharing such information , this should be read by new generation to get connected with such an amazing artist ????
कविता और गीत की बेहतरीन व्याख्या की है निरज जी ने, बहुत ही बेहतरीन मुलाकात का संस्करण, वाह