Mukesh Geet kosh

Mukesh Geet Kosh – Memoir

It is heartening that Harish Raghuvanshi’s efforts have brought the total number of songs included in this new edition of Mukesh Geet Kosh to 1,053. There is no doubt that Mukesh Geet Kosh is leading among the books published with detailed and authentic information. These informations are about all the songs sung by any one singer in all languages.

Bharti Mangeshkar’s Hindi translation of the memoir written in Marathi by Pt. Hridaynath Mangeshkar, an eyewitness to the last moments of the singer Mukesh (death 28 August 1976, 3:20 AM, ISD), was published in the then-famous weekly magazine ‘Dharmyug’. 

गायक मुकेश के आखिरी पलों (देहावसान 28 अगस्त 1976, 3:20 AM, ISD) के चश्मदीद गवाह हृदयनाथ मंगेशकर द्वारा मराठी में लिखे संस्मरण का भारती मंगेशकर द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद तत्कालीन प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित हुआ था।

ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो अभी कल परसों ही जिस व्यक्ति के साथ ताश खेलते हुए और अपने अगले कार्यक्रम की रूपरेखा बनाते हुए विमान में सफर किया था, उसी अपने अतिप्रिय, आदरणीय मुकेश दा का निर्जीव, चेतनाहीन, जड़ शरीर विमान के निचले भाग में रखकर हम लौट रहे हैं। उनकी याद में भर-भर आने वाली आँखों को छिपा कर हम उनके पुत्र नितिन मुकेश को धीरज देते हुए भारत की ओर बढ़ रहे हैं।

Mukesh 3उस दिन 1 अगस्त 1976 था।  वैंकुवर के एलिजाबेथ सभागृह में कार्यक्रम की पूरी तैयारियां हो चुकी थीं। मुकेश दा मटमैले रंग की पैंट, सफ़ेद कमीज़, गुलाबी टाई और नीला कोट पहन कर आए थे. ध्वनि परीक्षण के बाद मैं ऊपर के साउण्ड बूथ में मिक्सर चैनेल हाथ में सम्हाले हुए कार्यक्रम के प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा कर रहा था. मुकेश दा मंच पर आए और तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हॉल गूंज उठा। मुकेश दा ने बोलना प्रारम्भ किया तो भाइयो और बहनों कहते हुए इतनी सारी तालियां पिटी कि मुझे हॉल के सारे माइक बन्द कर देने पड़े। मुकेश दा अपना नाम पुकारे जाने पर सदैव पिछले विंग से निकल कर धीरे-धीरे मंच पर आते थे. वे ज़रा झुक कर चलते थे. माइक के सामने आकर उसे अपनी ऊँचाई के अनुसार ठीक कर तालियों की गड़गड़ाहट रुकने का इन्तज़ार करते थे. फिर एक बार राम राम भाइयों और बहनों का उच्चारण करते थे. कोई भी कार्यक्रम क्यों न हो, उनका यह क्रम कभी नहीं बदला।

उस दिन मुकेश दा मंच पर आए और बोले, “राम-राम भाईयों और बहनों, आज मुझे जो काम सौंपा गया है, वह कोई मुश्किल काम नहीं है।  मुझे लता की पहचान आपसे करानी है। लता मुझसे उम्र में छोटी है और कद में भी, पर उसकी कला हिमालय से भी ऊँची है। उसकी पहचान मैं आपसे क्या कराऊँ? आइए हम सब खूब ज़ोरों से तालियाँ बजा कर उनका स्वागत करें, लता मंगेशकर

दीदी के पाँच गाने पूरे होने पर मुकेश दा फिर मंच पर आए। एक बार फिर माइक ऊपर-नीचे किया और हारमोनियम सम्भाला और कहना शुरू किया कि “मैं भी कितना ढीठ आदमी हूँ। इतना बड़ा कलाकार अभी-अभी यहाँ गए कर गया है और उसके बाद मैं यहाँ गाने के लिए आ खड़ा हुआ हूँ। भाइयों और बहनों, कुछ गलती हो जाए तो माफ़ कर देना।” मुकेश दा के शब्दों को सुनकर मेरा जी भर आया। एक कलाकार दूसरे का कितना सम्मान करता है, इसका यह एक जीता जागता उदाहरण है, और माइक पर स्वर उठा जाने कहीं गए वो दिन…।

और कुछ गानों के बाद दीदी मंच पर पहुँच गई और युगल गीतों की शुरूआत हो गई। सावन का महीना…, कभी-कभी मेरे दिल में…, दिल तड़प-तड़प के कह रहा है… आदि एक के बाद एक गानों का तांता लगा रहा। फिर आखिरी दोगाने का प्रारम्भ हुआ आजा रे, अब मेरा दिल पुकारा…

Mukesh 1अमरीका की उसी यात्रा के अगले पड़ाव के लिए हम टोरण्टो से डेट्रॉयट जाने के लिए रेलगाड़ी पर सवार हुए। हमारे एंकर हमें छोड़ने आया था। मुकेश दा ने उनसे पूछा, “क्यों नियों साहब, आप नहीं आ रहे हमारे साथ?” उन्होंने जवाब दिया, मैं तो आपको छोड़ने आया हूँ। मुकेश दा हँसे और कहा “अरे आप हमें क्या छोड़ेंगे, हम आपको ही ऐसा छोड़ेंगे कि फिर कभी नहीं मिलेंगे।” और हँसते हुए राम-राम कह कर गाड़ी में चढ़ कर मेरे पास आ बैठे। दुर्भाग्यवश ताश की बाज़ी में इस बार मुकेश दा नौ डॉलर हार गए। हमने उनका खूब मज़ाक उड़ाया और वे मुझसे बोले, “आज कुल मिला कर मैं नौ डॉलर हार गया हूँ मगर कल रात को तुमसे सब वसूल कर लूंगा। पर कल की रात उनकी आयु में नहीं लिखी थी। मुझे कल्पना भी नहीं थी कि कल की रात मुझे मुकेश दा के निर्जीव शरीर के पास बैठकर काटनी पड़ेगी।

वह दिन (27.08.1976 अमरीकन समयानुसार) ही अशुभ था। दीदी और अनिल मोहिले शाम के कार्यक्रम की रूपरेखा बना रहे थे कि तभी मुकेश दा का फ़ोन आया कि हारमोनियम ऊपर भिजवा दो, मैंने हारमोनियम भेज दिया। कार्यक्रम के अनुसार म्यूजीशियन्स को तैयार करके ठीक छह बजे मंच पर पहुँच जाना था।  तभी चाय आ गई, मैं चाय तैयार कर ही रहा था कि “ऊपर आओ” की आवाज़ सुनते ही भागा। अपने कमरे में मुकेश दा लुंगी और बनियान पहने हुए पलंग के पीछे हाथ टिका कर बैठे थे।

मैंने नितिन से पूछा क्या हुआ? उसने बताया पापा ने कुछ देर गाया, फिर उन्होंने चाय मंगाई। चाय पीने के बाद उन्हें गर्मी लगने लगी और पसीना आने लगा. इसलिए मैंने आपको बुला लिया। पर मुझे कुछ डर लग रहा है.” मैंने मुकेश दा से कहा, आप लेट जाइए। वे एकदम बोल पड़े, “अरे, तुम अभी तक गए नहीं? लेटने से मुझे तकलीफ़ होती है। तुम स्टेज पर जाओ, इंजेक्शन लेकर मैं पीछे-पीछे आता हूँ। और हाँ, लता को कुछ मत बताना, वह घबरा जाएगी। तभी डॉक्टर आ गए, ऑक्सीजन और व्हील चेयर के साथ ही उन्हें एम्बुलेन्स पर चढ़ा दिया गया। एम्बुलेन्स में उन्होंने केवल एक वाक्य बोला “यह पट्टा खोल दो।” फिर कुछ नही बोले. हजारों गाने गाने वाले मुकेश दा के आखिरी शब्द थे “यह पट्टा खोल दो।” व्हील चेयर का पट्टा या जीवन का बन्धन ?

Mukesh 2एमरजेन्सी वॉर्ड में पहुँचने से पूर्व उन्होंने केवल एक बार आँखें खोली, हँसे और बेटे की तरफ़ हाथ उठाया। डॉक्टर ने वॉर्ड का दरवाजा बन्द कर लिया। आधे घण्टे के बाद दरवाजा खुला। डॉक्टर बाहर आये और उन्होंने मेरे कन्धे पर हाथ रख दिया। उनके स्पर्श ने मुझसे सब कुछ कह दिया था।

डेट्रॉयट का विशाल सभागृह खचाखच भरा हुआ है। मंच सजा हुआ है और सभी वादक कलाकार साज मिला कर तैयार बैठे हुए हैं। इन्तज़ार है कि मैं कब आऊँ, माइक टेस्ट करूँ और कार्यक्रम शुरू हो। मैं मंच पर गया, सदैव की भाँती रंगभूमि का नमस्कार किया। माइक हाथ में लिया और कहा, “भाइयों और बहनों, कार्यक्रम प्रारम्भ होने में देरी हो रही है पर उसके लिए आज मैं आपसे क्षमा नहीं मांगूंगा। आज मैं किसी से कुछ नहीं मांगूंगा, पर केवल उससे बारम्बार एक ही मांग है- “ओ जानेवाले ह सके तो लौट के आना…।”

-हृदयनाथ मंगेशकर (मुकेश गीत कोश)

हरीश जी से मेरा परिचय 4 दशकों से भी अधिक पुराना है। हरीश जी ने अपने प्रिय गायक मुकेश के गीतों का संग्रह (गीतों के पूरे पूरे बोल और कैसेट पर उनकी रिकॉर्डिंग) करने में कितनी मेहनत की है, उसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ। ख़ुशी की बात है कि उनके प्रयासों से मुकेश गीत कोश के इस नए संस्करण में शामिल गीतों की कुल संख्या 1,053 हो गयी है। किसी एक गायक के सभी भाषाओं में गाए उपलब्ध सभी गीतों की विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी को लेकर प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में मुकेश गीत कोश अग्रणी है, इसमें ज़रा भी संदेह नहीं। उनके द्वारा संकलित गुजराती फ़िल्म गीत कोश एवं 35 फ़िल्मी हस्तियों को लेकर प्रकाशित पुस्तक इन्हें ना भुलाना भी उनकी कड़ी मेहनत एवं लगन का ही नतीजा है।

-हर मन्दिर सिंह ‘हमराज़‘ | +91 9336587507

(संकलक : हिंदी फ़िल्म गीत कोश)

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