मेरी कलम से
चुपके से आये भारत में, इस प्रलयंकारी तूफ़ान को,
अलविदा करो इस धरती से इस “कोरोना” शैतान को।
बहुत हो गयी अगवानी यहाँ, बजा बजा कर थालियाँ,
मल मल कर धोये हाथों को, अपनों से बनायी दूरियाँ।।
सहमा सहमा हर शख़्स यहाँ, गर्दिश में है सारी दुनिया,
बरपा है कोरोना का कहर, कैसे दुःख अपना करें बयां।
संस्कारों को भूल गए, पाश्चात्य संस्कृती को अपनाया है,
धरा प्रकृति ने रौद्र रूप, दुनिया को सबक सिखाया है।।
खो गयी पवित्रता नदियों के जल से, खेतों से खलिहानों से,
मिल रही दोगुनी फसलें अब, केमिकल की खादों से।
कुदरत ने भरपूर दिया हमें, कोई न खाली पल होगा,
दोहन करते रहे उम्रभर, सोचा न ऐसा फल होगा।।
जैन धर्म के सिद्धांतों से, तन मन विचार निर्मल होते,
मुख पर मास्क लगा कर के, सात्विक भोजन का रस लेते।
मानव जीवन अनमोल है तो, हमें सबकी जान बचाना है,
प्रण करते हैं भारत के प्रति, अपना कर्तव्य निभाना है।।
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