INSIGHT - Teesri Manzil - Vineet Srivastava

कौन इस कैलेंडर के पन्ने को पलटे?

  • विनीत श्रीवास्तव | इंदौर (म.प्र.)

सुरमित्रों, आज तक १५० से ज़्यादा गीतों की समीक्षा लेखन और वीडियो के ज़रिये कर चूका हूँ। पर हिन्दी फ़िल्मी गीतों के बारे में जब बात करें तो ऐसे कई अरमान होते हैं जो दबे रहते हैं पर दफन नहीं होते और सही वक़्त पर उछल कर सामने आ ही जाते हैं। आज की कहानी में दो चमत्कारिक, क्रांतिकारी घटनाएं समाई हुई हैं। एक संगीतकार की और दूजी एक साज़िंदे की जिन्होंने इतिहास रच दिया। भारतीय परंपरा अनुसार बिन गुरु स्मरण के सभी विद्या निस्तेज व निष्प्रभावी हैं। सर्वप्रथम समस्त गुरुओं को दण्डवत प्रणाम। आगे आप इन गुरुवरों का नाम खुद-ब-खुद जान जाएंगे। “श्री गुरुचरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार, बल बुद्धि विद्या देहुँ, मोहि हरहुं कलेश विकार”।

समूचे विश्व में सर्वाधिक फ़िल्में कहीं बनती हैं तो वो है भारत। सबसे ज्यादा फ़िल्म गीत-संगीत बनता है तो वो है भारत, औऱ सबसे ज़्यादा बड़ी म्युज़िक इंडस्ट्री रही तो वो भी है भारत। जय भारत, जय भारतीय संगीत। हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गोल्डन पीरियड में करीब करीब हर दशक में बदलाव आते रहे हैं और ये बदलाव लाज़िमी भी थे। सब्जेक्ट बदल रहे थे, सोसायटी बदल रही थी और लोगों की पसन्द भी बदल रही थी। पहले जहाँ हिन्दी फ़िल्म में 1950 तक monophonic music था व हीरो सदा अपनी बर्बाद लुटी-पिटी मोहब्बत पर बेबसी से छाती कूट जार-जार आँसू भर रोता रहता था। दबा कुचला, शर्मीला, ज़माने का सताया हुआ औऱ उदास गाने गाता था तो लोग रोते-रोते रुमाल गिला करते फ़िल्में भी देखते थे।

INSIGHT - Teesri Manzil - 1आज़ादी आई और बदलाव लाई। संगीत Homophonic हुआ और Harmonized हुआ। जो western music अछूत था उसकी एंट्री हुई और हमारे दिग्गज संगीतकारों को Orchestration की ज़रूरत भी महसूस हुई। हीरो भी थोड़ी थोड़ी साँसें आज़ादी में हीरोइन संग लेने लगा और रोना-धोना बन्द होने लगा। Happy ending होने लगी। 60 के बाद के दशक में हमारा संगीत Polyphonic होने लगा और अब सिर्फ ऑर्केस्ट्रा ही नहीं बल्कि Cross Melodies, sub sequent melodies, obbligato, counters, couplers, sonata, cantata, cadence जैसे features बतौर orchestration, गोअन-पारसी म्युज़िशियन के मार्फ़त स्वीकारे जाने लगे। Jazz, Blues, Rock से लोगों का परिचय हुआ। हीरो भी सारी शर्म छोड़कर,अब सरेआम चिल्ला कर अपनी हीरोइन को जोर से आवाज़ देने लगा। हीरोइन भी सारी शर्मो-हया छोड़ उसके पहलू में डांस करने लगी। क्लब कल्चर आ गया और लोग होटल्स में जाने लगे। हिन्दुस्तानी जवां भी इंजीनियरिंग, मेडिकल, साइन्स, लॉ पढ़ते-पढ़ते कुर्ता-पायजामा, साड़ी छोड़ कर कोट-पेंट, सलवार सूट्स आदि पहनने लगे।

इधर हमारे दिग्गज संगीतकारों में कोई young नहीं था जो युवा जनता की नब्ज़ पहचाने, जो करवट लेने को तैयार बैठी थी। बस ज़रूरत थी की कौन इस कैलेंडर के पन्ने को पलटे? Who bells the cat? हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा। याने जो हिम्मत करता है उसकी मदद ऊपरवाला भी करता है। तो ये हिम्मत करी कुमार सचिन देववर्मा (देवबर्मन, देववर्मा का अपभ्रंश है, जिसे उन्होंने कभी ठीक नही किया) के सुपुत्र राहुल देवबर्मन ने, जिन्हें लोग पंचम दा के नाम से जानते हैं।

“बरगद के नीचे पौधा नहीं फलता है” की कहावत धरी रह गई एक मज़ेदार मीटिंग के बाद। ये मीटिंग थी देव साहब के इनकार के बाद नासिर साहब जो प्रोजेक्ट ला रहे थे उस फ़िल्म की। डायरेक्टर विजय आनंद “गोल्डी” को जब पता चला कि देव साहब नहीं हैं अब इसमें, तो बात शम्मी जी पर जा पहुँची। शम्मी जी एकमात्र हीरो थे जो म्यूज़िक सिटिंग में पूरा-पूरा दखल रखते थे और म्यूज़िक डायरेक्टर भी वही फाइनल करते थे। गोल्डी सर के ज़रिए पंचमदा की NH Films में एंट्री और उनके पहले किस्से का ज़िक्र हम बाद की पोस्ट के लिए postponed करते हैं जो कि गाना नम्बर 1 के रेफरेंस में रहेगा। आज गाना नम्बर 3 है जो हिन्दी सिने म्यूज़िक इंडस्ट्री को करवट दिलाने जा रहा था। पर ये करवट इतनी आसान भी नहीं थी। इस करवट के लिए पंचम दा को चाहिए थे ऐसे म्यूजिशियन, जो Jazz music भी जानते हों और कुछ नया करने का ज़ज़्बा रखते हों। खुदी को कर बुलन्द इतना के हर तकदीर से पहले, खुदा बन्दे से खुद पूछे के बता तेरी रज़ा क्या है? तो खुदा ने पंचम दा से उनकी रज़ा मुताबिक, फ़ौरन एक बन्दे को अवतरित किया जिसका नाम था दिलीप नाइक

श्रद्धेय दिलीप नाइक यूँ तो मशहूर अरेंजर सेबेस्टियन डिसूजा के ज़रिए शंकर-जयकिशन से जुड़ चुके थे। पर उनके हाथों इंडस्ट्री की जो करवट लिखी थी वो घड़ी तब आई जब ऊपरवाले को हिन्दी फ़िल्म में एक नया संगीतकार पैदा करना था। पंचम दा की ताज़ी हवा को तूफ़ान बनाने में जो साथ दिलीप नाइक का चाहिए था तो उस आंधी ने अपने आप हिन्दी फ़िल्म म्यूज़िक को धड़ाम से करवट दिलवा दी। हिन्दी फ़िल्म म्यूज़िक की इस करवट ने जब अंगड़ाई ली तो जलजला आ गया और वह फ़िल्म थी 1966 की ब्लॉक बस्टर ‘तीसरी मंज़िल’।

इसके पहले कभी किसी ने नहीं सोचा था कि कोई मेलोडी ऐसी अनोखी विचित्रताएं लिए भी हो सकती हैं? आइये गिनें.INSIGHT - Teesri Manzil - 2

विचित्रता 1:

हमारे गानों में प्रिल्यूड्स तो रखे जाने लगे थे पर ज़्यादातर वे कुछ ही bars के होते थे और उनमें ostinato याने बारम्बार रिपीटेशन नहीं होता था। इस विचित्रता के जनक हम सबके गुरुवर श्री दिलीप नाइक जी हैं, जिन्होंने इंडस्ट्री में एक नई स्टाइल, एक नए इलेक्ट्रिक साउंड, एक नई स्पीड, एक नई शैली को अपने Gibson Firebird VII block Electric Guitar से सरअंजाम किया। नासिर साहब ने एक ऐसा musical sequence – Fugue composition चाहा था जिसमें हीरोइन आशा पारेख, रॉक एन रोल क्लब में, ड्रमर-सिंगर शम्मी कपूर से मिलने जाएगी।

This fugue composition prelude is composed by Arranger Manohari Singh with Dilip Naik for 24x 3=72 bars followed by 16 x 3=48 bars drumming by the great Drummer Leslie Go’dinho. यूँ ये अपनी तरह का 72 सेकण्ड्स का इंट्रोल्यूड हुआ जिसमें एक ही frase को 3 बार एक दनदनाती स्पीड में प्ले किया गया। Cut off by Xylophone, Big brass band and then strings. चूंकि ये रिकॉर्डिंग के समय मैं 10 साल का बच्चा था तो पक्के से नहीं मालूम के Kersi Lord सर या Burjor Lord  सर में से कौन है? “बज्जी सर, चरण स्पर्श plz correct me”. बरसों से ये Guitar frase ऑडिशन में रहा CMA में Aspirant guitarists के सबसे कठिन इम्तेहान में। क्या ही गज़ब velocity है, बाप रे बाप!

विचित्रता 2:

इस तूफ़ानी इलेक्ट्रिक गिटार के प्रिल्यूड के बाद duet song का पार्ट 1 है, जिसे मज़रूह साहब ने रफ़ी साहब के लिए इतना ही लिखा था। आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा, अल्ला अल्ला, इनकार तेरा हो। पंचम दा ने कहा मज़रूह साहब से के “मेरी मेलोडी यहाँ ख़त्म नहीं होगी। मुझे इसे और सनसनाना है, अभी तो मैं इसे आगे एक नए अंदाज़ में पेश करने की इजाज़त चाहूंगा।

a & b pairing – 1 आहा आजा 2 आहहह आजा 3 आहा आजा 4 अहह आजा 5 आहा आजा 6आह आजा 7आ ह्ह आ जा 8 अहह आ। अब कुल जमा 8 बार कोई लड़का किसी हसीना को नए अंदाज से पुकारे ये तो कुछ नया था न फ़िल्म इंडस्ट्री में? जनता के लिए भी!!

विचित्रता 3:

हमारे गानों में कभी भी गिटार को sub ordinate / sub sequent melody के बतौर कभी नहीं लिया गया था। जब 8 बार ये अहह आजा अहह आजा होता है तो दिलीप सर का Gibson firebird क्या जबरदस्त फॉलो करता है गाने की lyrical line को।

विचित्रता 4:

M1 याने first music में मनोहरी दा की Concert Key Flute पर बतौर punctuation comma एक नोट प्ले किया है दिलीप सर ने, जो अनूठी मिसाल है। इस comma के बाद वे harmonical पर एक short fraise लेते हैं। Choreographer Mr Herman Benjamin and Mrs Margret Ayesha Nasir Hussain ने एक Rock N Roll से नया डांस फॉर्म Shake लिया था। ये हिंदुस्तानी पब्लिक के लिए एक नया dance form था, जिसमें सब full body shake करते हैं। M2 याने सेकंड म्युज़िक में बासु दा के निर्देशन में स्ट्रिंग सेक्शन एक स्कोर लेता है, जिसे जॉर्ज सर का ट्रम्पेट आगे बढ़ाता है औऱ इसे फिर दिलीप सर chords two tonal momentum देते हैं याने एक ही frase को 2 अलग-अलग पिच पर लेते हैं। Tenor & Soprano pitch पर बजे इस phrase को ज़रूर से सुनें।

इसी frase के बाद shakes dance form को continue करते-करते एंट्री लेती हैं मैडम आशा पारिख। ओ मेरा ख्याल तुझे है, मैंने अभी ये है जाना, ओहो हो हो ओहो ओहो, सच्चा है प्यार के झूठा, ये है मुझे आज़माना हो। ओह्ह आजा अहह आजा। मज़ेदार बात तो ये हुई के पंचम दा ने इस 8 बार के अहह आजा की प्रेक्टिस इसी अनोखे अंदाज में करने का जो होमवर्क दिया था तो उसे आशा जी अपनी कार में ही करने लगीं और बेचारा ड्राइवर घबरा गया और दौड़ा कर उन्हें ले गया हॉस्पिटल!!!

विचित्रता 5:

M3 याने third music में हिन्दी फ़िल्म सिने म्यूज़िक इंडस्ट्री में पहली बार introduce हुई The Bossa-Nova Beat। इस Brazilian Bossa-Nova Beat को अभी तक हिंदुस्तानी जनता ने नहीं सुना था। कहरवा, दादरा, रूपक के बाद बहुत हुआ तो Waltz, Boogi-Woogi, Calypso के युग में जब Dancers इस ब्राजीलियन Bossa-Nova पर shakes करते तो सच कहूँ टाकीज़ में बैठा हर इंसान बाल्कनी से थर्ड क्लास तक थिरक उठता था। तिस पर सोने पे सुहागा दिलीप सर जब Gibson fire bird पर एक small phrase लेते हैं। आखिरी के सवा मिनिट के CODA music में भरपूर crescendo है।

फ़िल्म हिट, हिटर, हिटेस्ट हो गई। भूचाल आ गया साहब। कुछ ने इसे भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर विदेशी हमला बताया तो कुछ ने इसे एक नया कैलेंडर जो कि पलट चुका था। पंचम दा ने जो ये पैनोरमा बदल दिया उसके मुख्य चित्रकार थे श्री दिलीप नाइक सर। पंचम दा के करियर में तीसरी मंजिल का ये 5 विचित्रताएं लिए ये गाना न आता तो? पर ऐसा होना ही था। मंज़ूर ए खुदा, हुए वही जो प्रभु राम रची राखा। इतिहास औऱ आप, हम सब गवाह हैं, इसके बाद के पंचम दा के सुल्तानी सफर के, पर उन्हें जिस शख्स ने सुल्तान बनाया वो टाइगर अभी ज़िंदा है। दिलीप नाइक सर ज़िंदाबाद। ज़िंदाबाद। आपके चरणों का दास।

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