सारेगामा की महफ़िल
कल की सारेगामा की महफ़िल ब्रास हार्मोनी को जैसा की कहा भी गया है “ब्रास का सुरीला रास” बिलकुल वही रंग जमा। थोड़ी सी देर की जो शिकायत थी पहली ही फूंक से जाती रही। आम तौर पर फूंकने वाले बाजों में सैक्सोफोन को ही सबसे ज़्यादा ताकतवर माना जाता है लेकिन कल की महफ़िल में किशोर सोढा के ट्रंपेट ने वो कमाल दिखाया की सुनने वाले अश अश कर उठे। किशोर कुमार के शोज़ की जान इस ट्रंपेट प्लेयर के साथ इस बार उनके ६६ साला भाई राज सोढा भी सैक्सोफोन के साथ थे। हिन्दुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ शोले ही एक ऐसी फिल्म है जिसके टायटल की ताल सुर और बाजे तक लोगों की यादों में ज़िंदा है। टायटल सांग शुरू करते ही वो महफ़िल से ऐसे जुड़ गए। रतलाम की सोढा फैमिली अपने बैंड की वजह से मशहूर थी उनके भाई राजेंद्र सिंह सोढा ने न सिर्फ केवल लता मंगेशकर के साथ हज़ार से ज़्यादा गीतों में वायलिन बजाई थी बल्कि उसमें थोड़ा बदलाव कर शास्त्रीय में ढाल उसे स्वरलीन बना दिया था उसके बाद पूरा खानदान बंबई में बस गया था। राज सोढा भी तकरीबन हर बड़े संगीतकार संग सैक्सोफ़ोन और ब्रास मेटल फ्लूट का शानदार काम दिखा चुके हैं। किशोर सोढा को तो किशोर कुमार से राहुल देव् बर्मन ने हक़ से मांग लिया था। लाभमंडपम का हाल वक़्त पर तकरीबन पूरा पैक हो गया था जो सात बजे शो शुरू होने से रात दस बजे शो ख़त्म होने तक जमा रहा। ब्रास सेक्शन में सबसे पहले ट्रंपेट का ही खूबसूरती से इस्तेमाल हुआ था कई क्लब सांग्स के इंट्रो तो कभी इंटर्ल्युड में इस्तेमाल होता रहा। सारेगामा ने जो निमंत्रित महफ़िल सजाई थी वो न सिर्फ हद दर्जे तक नियंत्रित बल्कि सुरीली भी साबित हुई जैसे बिलकुल रिद्म पैटर्न सी बजती तालियां और हर पेशकश पर दाद और वाह वाह से हाल गूंजता रहा।कई लोग चाहते हैं सुनने वाले भी सुरीले हों तो मज़ा दुगना हो जाता है|
किशोर और राज जी ने आमतौर पर सैक्सोफोन पर बजते गानों की लिस्ट से अलहदा काम दिखाया पूरे वक़्त नोट्स देख बजाते कलाकार ज़रा सा भी सुर ऊपर नीचे हो जाने पर रुककर सही और सुरीला बजाते रहे। कई बार दोनों ने एक साथ तो कभी अकेले तो कभी गायक गायिकाओं संग खूब सुनाया उन फ़िल्मों का भी ज़िक्र हुआ जिसमें उन्होंने बजाया है |
नितेश भोला की सात सदस्यीय टीम ने वो संगीत दिया के बंबई के कलाकार भी तारीफ़ किये बिना न रह पाए। संगीत में तो अभी सारे कलाकार अपना बेहतर दे रहें हैं वहीं बाहर से आने वाले कलाकारों से कई गुना बेहतर हमारे सिंगर है बस बड़े प्रोग्राम में वो उभर नहीं पाते हालंकि आकांक्षा जाचक ने पूरे मूड को कायम रख बता दिया की ये कोई बड़ी बात नहीं। स्वरांश पाठक कभी कोरस तो कभी सोलो लेते दिखे, प्रसन्ना राव की आवाज़ का स्लो पेस और खरज वाले गीतों में बेहतरीन इस्तेमाल हुआ, श्रद्धा जगताप ने भी खूब सुनाया तो शास्त्रीय ढब के गीत रसिका गावड़े के हिस्से में आये जिसमें उनकी सोढा ब्रदर्स के साथ जुगलबंदी और फ्यूज़न को खूबसूरती से निभाया गया तुंबा और तबले पर सचिन भोंसले ने बेहतरीन काम पेश किया। दो शौकिया कलाकार भी मंच पर आये जिसमें आईसैक्ट के अवधेश दावे ने सुर-ताल में सुनाया |
स्टेमिना से बजाते इस उम्र के साज़िन्दों के लिए ये एक यादगार महफ़िल के तौर हमेशा याद की जाएगी तीन चार दिनों से आये ये कलाकार कल जयपुर भी प्रोग्राम दे आये। महफ़िल में दिल से सुनते विजय गावड़े से पुछा जो मेंडोलिन और हारमोनियम के साथ साथ साँस वाला बाजा मेलॉडिका भी बजाते हैं, इस उम्र में कितना मुश्किल है यह सब, वो कहते हैं ये उसी में रच बस गए हैं, इनके खून में संगीत है, इनके बड़े भाई को इनके बैंड के संग इंदौर राजवाड़ा पर सिर्फ दस साल की उम्र में ठेले पर बैठ वायलिन बजाते देखा है, उस वक़्त भी लोग ऐसे ही ताज्जुब करते थे |
डॉ. जावेद ख़ान – इंदौर
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