जीना इसी का नाम है – कविराज शैलेन्द्र चौक
Yunus Khan | yunus.radiojockey@gmail.com
बारिश की रिमझिम के बीच गीतकार शैलेंद्र के 98वें जन्मदिन के मौक़े पर खार में नौंवे रास्ते और लिंकिंग रोड खार के जंक्शन को गीतकार शैलेंद्र चौक का नाम दिया गया। गीतकार शैलेंद्र चौक का उद्घाटन विधायक श्री आशीष शेलार और नगर-सेवक अलका केरकर की मौजूदगी में किया गया। इस चौक के नामकरण में वेंकटाचलम वेंकट का विशेष योगदान रहा है। इस मौक़े पर गीतकार शैलेंद्र की बेटी अमला शैलेंद्र मजूमदार, बेटे दिनेश शैलेंद्र समेत अन्य परिवारजन मौजूद थे। जाने-माने गीतकार इरशाद कामिल भी गीतकार शैलेंद्र की स्मृति को नमन करने वहां पहुंचे थे।
नौवां रास्ता वो सड़क है जिस पर ‘रिमझिम’ है। ये वो घर है जहां गीतकार शैलेंद्र रहते रहे और उन्होंने न जाने कितने गाने इसी घर में रचे हैं। बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच उस घर को देखना और गीतकार शैलेंद्र के नाम पर एक चौक का नामकरण होते देखना अपने आप में एक यादगार अनुभव था। शैलेंद्र के लिखे ना जाने कितने गाने उस दिन सबके ज़ेहन में गूंज रहे थे। कविराज कहे, न ये ताज रहे, न ये राज रहे, न ये राजघराना, प्रीत और प्रीत का गीत रहे, कभी लूट सका न कोई ये खज़ाना।
मैं ये मानता हूं कि शैलेंद्र ने फ़िल्मी गीतों को काव्यात्मक ऊंचाई पर पहुंचाया है, और वो भी बहुत ही सहजता से। ज़रा अंग्रेज़ी के क्लासिक कवि शैली की पंक्तियां याद कीजिए—‘Our sweetest songs are those, what tell of the saddest thought, our sincerest laughter with some pain in thought… इन पंक्तियों को अलफ़ाज़ के जादूगर शैलेंद्र ने कितनी सहजता से हिंदी में लिखा—‘हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं, जब हद से गुज़र जाती है खुशी, आंसू भी छलकते आते हैं’। ये फ़िल्म ‘पतिता’ का तलत महमूद का गाया गीत है। जिसे संगीत से संवारा था शंकर जयकिशन ने।
क्या आज आप किसी फ़िल्म में इस गाने की कल्पना कर सकते हैं, ऐसा लगता है मानो ये कोरोना वाले दौर में हम सबके मन की आवाज़ है – अब कहां जायें हम ये बता दें जमीं / इस जहां में तो कोई हमारा नहीं / अपने साए से भी लोग डरने लगे / अब किसी को किसी पर भरोसा नहीं’। शैलेंद्र ने ये गीत फ़िल्म ‘उजाला’ के लिए लिखा था। इसी शैलेंद्र के भीतर एक असुरक्षित मन था। दुनिया का सताया एक मन। जो पूछता था – ‘कोई भी तेरी राह ना देखे / नैन बिछाए ना कोई / दर्द से तेरे कोई ना तड़पा / आंख किसी की ना रोई / कहे किसको तू मेरा / मुसाफिर जायेगा कहां’।
फ़िल्म ‘गाइड’ में शैलेंद्र ने एक अद्भुत प्रेमगीत रचा है – ‘तेरे दुख अब मेरे, मेरे दुख अब तेरे, तेरे ये दो नैना, चांद और सूरज मेरे, ओ मेरे जीवन साथी, तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं’।
शैलेंद्र के रचना संसार में अनगिनत अनमोल गीत हैं। आज आप घड़ी घड़ी जो ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाते हैं वो शैलेंद्र की ही देन है। उनकी कविता है – ‘वक़्त की सुनो पुकार इंकलाब जिंदाबाद, कब तक सहोगे साथियों ये ज़ुल्म और खून की दहाड़ बार बार, इंकलाब जिंदाबाद। इंकलाब जिंदाबाद।
ऐसे अद्भुत अनमोल प्यारे गीतकार की याद को हमारा हज़ार बार नमन।
Comments (5)
Superb ?
Undoubtedly a great lyricist
He was one of the best poet of golden era. The body of the work he left behind will be inspiration for generations to come. Long live shailendra.
शैलेंद्र जी नें हमें एक से बढकर एक यादगार गीत दिए हैं ।
वाहवा,